Unit 3 “प्रश्नावली”

प्रश्न 1: आर्थ्रोपोडा संघ (Phylum Arthropoda) के सामान्य लक्षण क्या हैं?

उत्तर: आर्थ्रोपोडा संघ (Phylum Arthropoda) के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

  1. संरचना (Body Structure): शरीर त्रिस्तरीय (triploblastic) और खंडित (segmented) होता है। शरीर सिर (head), वक्ष (thorax), और पेट (abdomen) में विभाजित होता है। इनका शरीर कठोर काइटिन (chitin) से बने बाह्यकंकाल (exoskeleton) से ढका होता है।
  2. असंधित अंग (Jointed Appendages): इनके अंग (appendages) जोड़ों वाले होते हैं, जो चलने, भोजन पकड़ने, तैरने, और अन्य कार्यों में सहायक होते हैं।
  3. संवहनी तंत्र (Circulatory System): इनका रक्त परिसंचरण तंत्र खुला (open circulatory system) होता है।रक्त (haemolymph) में हीमोग्लोबिन नहीं होता, बल्कि हीमोसायनिन (haemocyanin) होता है।
  4. श्वसन तंत्र (Respiratory System): श्वसन गिल्स (gills), ट्रेकिया (trachea), या बुक लंग्स (book lungs) के माध्यम से होता है।
  5. तंत्रिका तंत्र (Nervous System): इनका तंत्रिका तंत्र अच्छी तरह विकसित होता है। मस्तिष्क और उदर तंत्रिका डोरी (ventral nerve cord) उपस्थित होती है।
  6. पाचन तंत्र (Digestive System): पाचन तंत्र पूरा (complete) होता है। इनमें विशेष प्रकार के मुखांग (mouthparts) भोजन को पकड़ने और चबाने के लिए विकसित होते हैं।
  7. प्रजनन (Reproduction): ये मुख्यतः उभयलिंगी (dioecious) होते हैं। यौन जनन (sexual reproduction) सामान्य है। विकास प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) हो सकता है।
  8. परिस्थिति और विविधता (Habitat and Diversity): ये स्थल, जल, और वायु सभी वातावरणों में पाए जाते हैं। इस संघ में कीड़े (insects), केंकड़े (crustaceans), मकड़ी (arachnids), बिच्छू (scorpions), आदि आते हैं।
उदाहरण: कीट (Insects): चींटी, मक्खी, मधुमक्खी। क्रस्टेशियन (Crustaceans): केकड़ा, झींगा। अरैक्निड (Arachnids): मकड़ी, बिच्छू। मायरीपोडा (Myriapods): गोजर (centipede), कनखजूरे (millipede)।

प्रश्न 2 : कीटों के सामान्य लक्षण क्या हैं?

उत्तर: कीट आर्थ्रोपोडा (Arthropoda) के सबसे बड़े और विविधता से भरे वर्ग (Class) हैं। इनके मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

1. शरीर की संरचना (Body Structure): सिर (Head): मस्तिष्क, एंटीना (antennae), और मुखांग (mouthparts) उपस्थित होते हैं। वक्ष (Thorax): तीन जोड़ी पैर (legs) और एक या दो जोड़ी पंख (wings) वक्ष से जुड़े होते हैं। पेट (Abdomen): इसमें पाचन, प्रजनन और श्वसन अंग स्थित होते हैं।
2. अंग (Appendages): प्रत्येक कीट के पास तीन जोड़ी पैर (6 legs) होते हैं। अधिकतर कीटों में एक या दो जोड़ी पंख (wings) होते हैं, जो वक्ष से जुड़े रहते हैं।
3. बाह्यकंकाल (Exoskeleton): शरीर कठोर काइटिन (chitin) से बने बाह्यकंकाल से ढका होता है, जो संरक्षण और आकार प्रदान करता है।
4. श्वसन तंत्र (Respiratory System): श्वसन ट्रेकियल तंत्र (tracheal system) द्वारा होता है। ट्रेकिया (tracheae) छोटी-छोटी स्पाइरेकल्स (spiracles) के माध्यम से शरीर के अंदर हवा पहुँचाती हैं।
5. परिसंचरण तंत्र (Circulatory System): खुला परिसंचरण तंत्र (open circulatory system) होता है। हीमोसेल (haemocoel) में रक्त (haemolymph) बहता है।
6. तंत्रिका तंत्र (Nervous System): मस्तिष्क और उदर तंत्रिका डोरी (ventral nerve cord) मौजूद होते हैं। इंद्रिय अंग (sense organs) जैसे एंटीना, नेत्र (compound eyes और simple eyes), और स्वाद व गंध के अंग विकसित होते हैं।
7. प्रजनन (Reproduction): अधिकतर कीट उभयलिंगी (dioecious) होते हैं। यौन जनन (sexual reproduction) के माध्यम से अंडे (eggs) देते हैं। विकास प्रत्यक्ष (direct) या अप्रत्यक्ष (indirect) हो सकता है, जिसमें अधिसंगति (metamorphosis) होती है।
8. पर्यावरणीय भूमिका (Ecological Role): परागण (Pollination): जैसे मधुमक्खियाँ और तितलियाँ। मृदा निर्माण (Soil Formation): जैसे दीमक और गोबर के कीड़े। कीटभक्षी (Predators): जैसे ड्रैगनफ्लाई। कृषि हानि (Pests): जैसे टिड्डी और चावल का कीड़ा।
उदाहरण (Examples): मधुमक्खी (Honeybee) – परागण और शहद निर्माण। तितली (Butterfly) – सुंदरता और परागण।चींटी (Ant) – सामाजिक संरचना का उदाहरण। मक्खी (Housefly) – अपशिष्ट निपटान में सहायक। भृंग (Beetle) – कठोर बाह्यकंकाल और विविधता।

    प्रश्न 3 : हानिकारक कीटों के लक्षण क्या हैं? टिड्डा हानिकारक कैसे है?

    उत्तर: हानिकारक कीट वे कीट हैं, जो फसलों, पशुओं, मनुष्यों, या उनके भंडारित उत्पादों को नुकसान पहुँचाते हैं। इनकीटों की उपस्थिति कृषि उत्पादन, स्वास्थ्य, और अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।

    हानिकारक कीटों के लक्षण (Characteristics of Insect Pests):
    1. अत्यधिक प्रजनन क्षमता (High Reproductive Rate): ये जल्दी और बड़ी संख्या में प्रजनन करते हैं।
    2. अडॉप्टिव क्षमता (Adaptive Capability): विभिन्न परिस्थितियों में जीवित रहने और अनुकूलन की क्षमता रखते हैं।
    3. पॉलीफेगस प्रकृति (Polyphagous Nature): ये कई प्रकार की फसलों और पौधों को खाते हैं।
    4. फसलों पर सीधा या अप्रत्यक्ष प्रभाव: फसल का भक्षण (Defoliation) या रस चूसना। रोग फैलाना, जैसे वायरस, बैक्टीरिया, या कवक।

    टिड्डा, विशेष रूप से टिड्डी दल (Locust), फसलों के लिए अत्यधिक विनाशकारी कीट है। यह सीधे पत्तियों, तनों, और फलों को खाकर फसल उत्पादन को नष्ट करता है। टिड्डे मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं, लेकिन इनकी आबादी नियंत्रण से बाहर होने पर ये लंबी दूरी तक पलायन कर सकते हैं। टिड्डा एक विनाशकारी कीट है, जो कृषि उत्पादन और किसानों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। समय पर निगरानी और उचित नियंत्रण उपायों का उपयोग करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

    टिड्डा हानिकारक कैसे है? (Why Grasshoppers Are Pests?)
    1. फसल हानि (Crop Loss): बड़े पैमाने पर फसल का भक्षण कर फसल को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं। मुख्यतः अनाज, सब्जियाँ, और चारा फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं।
    2. तेजी से फैलाव (Rapid Spread): टिड्डी दल (locust swarms) बनाकर सैकड़ों किलोमीटर दूर तक फैल जाते हैं। इनके झुंड एक दिन में हजारों हेक्टेयर फसल को नष्ट कर सकते हैं।
    3. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact): कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट। किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव।
    टिड्डों का नियंत्रण (Control of Grasshoppers):
    1. रोकथाम (Preventive Measures): फसल चक्र (Crop Rotation): फसलों को नियमित रूप से बदलना। अंडे देने वाले स्थानों (egg-laying sites) की निगरानी और उन्हें नष्ट करना।
    2. जैविक नियंत्रण (Biological Control): टिड्डों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे पक्षियों (birds) और परजीवियों का उपयोग। माइकोफंजाई (Entomopathogenic fungi): जैसे Metarhizium anisopliae का छिड़काव।
    3. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control): कीटनाशकों जैसे मैलाथियॉन (Malathion) और क्लोरोपायरिफ़ॉस (Chlorpyrifos) का छिड़काव। टिड्डी दल पर हवाई छिड़काव (aerial spraying)।
    4. सांस्कृतिक उपाय (Cultural Methods): खरपतवार नियंत्रण और फसल अवशेषों को हटाना। सामूहिक प्रयास से प्रभावित क्षेत्र को घेरकर कीटों का सफाया।

    प्रश्न 4 : मधुमक्खी (Honey Bee) का आर्थिक महत्व क्या है?

    उत्तर: मधुमक्खी का कृषि, पर्यावरण, और अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ये न केवल शहद उत्पादन के लिए जानी जाती हैं, बल्कि परागण (pollination) के माध्यम से फसलों की उपज बढ़ाने में भी सहायक होती हैं।

    1. शहद उत्पादन (Honey Production): मधुमक्खियाँ फूलों के रस से शहद बनाती हैं, जो पोषण और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है और इसका उपयोग औषधियों, सौंदर्य प्रसाधनों, और खाद्य उद्योग में किया जाता है। भारत जैसे देशों में शहद उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है। शहद का निर्यात विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
    2. मोम उत्पादन (Beeswax Production): यह मोम मधुमक्खियों के छत्ते से प्राप्त होता है। इसका उपयोग मोमबत्तियाँ, सौंदर्य प्रसाधन, औषधियाँ, और चमड़ा पॉलिश बनाने में होता है। मोम की उच्च मांग इसे एक लाभकारी उत्पाद बनाती है।
    3. परागण (Pollination): फसलों की उपज बढ़ाना: मधुमक्खियाँ विभिन्न फूलों से परागण करती हैं, जिससे फसलों का उत्पादन और गुणवत्ता बेहतर होती है। विशेष रूप से फल, सब्जियाँ, और तिलहन फसलों के लिए। परागण कृषि उद्योग की नींव है। विश्व स्तर पर मधुमक्खियों द्वारा की जाने वाली परागण सेवाओं का मूल्य अरबों डॉलर आँका गया है।
    4. रॉयल जेली और प्रोपोलिस (Royal Jelly & Propolis): रॉयल जेली: यह पोषण और औषधीय गुणों से युक्त है। इसका उपयोग स्वास्थ्य उत्पादों और दवाओं में होता है। प्रोपोलिस (Propolis): मधुमक्खियों द्वारा पौधों से एकत्रित गोंद, जिसका उपयोग दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है।
    5. रोजगार और स्वरोजगार (Employment & Livelihood): मधुमक्खी पालन (Apiculture) एक महत्वपूर्ण कृषि सहायक उद्योग है। यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करता है।
    6. पर्यावरणीय महत्व (Environmental Importance):
    • जैव विविधता बनाए रखना: मधुमक्खियाँ पौधों के परागण के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखती हैं। वनस्पतियों की प्रजातियों को बनाए रखने में योगदान करती हैं।
    • प्राकृतिक संतुलन: मधुमक्खियाँ पर्यावरण में स्थिरता बनाए रखने में सहायक हैं।
    7. आयुर्वेद और औषधीय उपयोग (Medicinal and Ayurvedic Use): शहद का उपयोग:आयुर्वेद में शहद का उपयोग औषधियों में किया जाता है। यह घाव भरने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, और त्वचा के उपचार में सहायक है।
    8. निर्यात और विदेशी मुद्रा (Export & Foreign Exchange): शहद और मधुमक्खी उत्पादों का निर्यात विभिन्न देशों में किया जाता है। यह भारत और अन्य देशों के लिए विदेशी मुद्रा अर्जन का महत्वपूर्ण स्रोत है।
    9. मधुमक्खी पालन में कम लागत और अधिक लाभ (Low Investment, High Return): मधुमक्खी पालन प्रारंभ करने के लिए कम पूँजी की आवश्यकता होती है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक लाभकारी उद्योग है।

    प्रश्न 5 : मोलस्का संघ (Phylum Mollusca) के सामान्य लक्षण क्या हैं?

    उत्तर: मोलस्का, जंतु जगत के एक प्रमुख संघ (Phylum) हैं, जिसमें नरम शरीर वाले जीव शामिल होते हैं। ये जलीय और स्थलीय दोनों आवासों में पाए जाते हैं और संरचना व कार्यों में अत्यधिक विविधता प्रदर्शित करते हैं।

    1. शरीर की संरचना (Body Structure): शरीर कोमल, असंSEGmented, और मांसल होता है। यह सिर (Head), पद (Foot), और आंतिका पिंड (Visceral Mass) में विभाजित होता है। कोशिका स्तर (Triploblastic): तीन भ्रूण स्तर (Ectoderm, Mesoderm, Endoderm) होते हैं।
    2. कवच (Shell): अधिकांश मोलस्का के शरीर पर कैल्शियम कार्बोनेट का बना कठोर कवच (shell) होता है। जैसे स्नेल (Snail) कुछ मोलस्का में कवच अनुपस्थित होता है, जैसे आक्टोपस (Octopus)।
    3. त्वचा और आवरण (Body Covering): शरीर मेंटल (Mantle) नामक त्वचा की तह से ढका होता है, जो कवच बनाती है।
    4. शरीर गुहा (Body Cavity): इनमें स्यूडोकोइलोम की उपस्थिति होती है। विशिष्ट हेमोकोइल (Haemocoel) के साथ खुला परिसंचरण तंत्र होता है।
    5. शारीरिक संरचनाएँ (Body Systems): पाचन तंत्र (Digestive System): पूरा और सुविकसित, जिसमें मुख और गुदा शामिल हैं। मुख में रेडुला (Radula): एक खुरचने वाला अंग होता है। श्वसन अंग: क्लोम (Gills) या फेफड़े (Lungs)। परिसंचरण तंत्र (Circulatory System): ज्यादातर में खुला परिसंचरण तंत्र।
    6. प्रजनन (Reproduction): प्रजनन अधिकांशतः यौन जनन (Sexual Reproduction) द्वारा। अधिकांश मोलस्का उभयलिंगी (Dioecious) होते हैं, लेकिन कुछ उभयलिंगी (Hermaphrodite) भी हो सकते हैं। विकास प्रत्यक्ष (Direct) या अप्रत्यक्ष (Indirect) हो सकता है।
    7. आवास (Habitat): जलीय (Aquatic): समुद्री और मीठे पानी में। जैसे सीप (Oyster) और स्क्विड (Squid)। स्थलीय (Terrestrial): नम स्थानों में। जैसे घोंघा (Snail)।
    आर्थिक महत्व (Economic Importance): भोजन स्रोत (Food Source): मोलस्क जैसे सीप और ऑक्टोपस को भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है। मोती निर्माण (Pearl Formation) पिंकटाडा (Pinctada) मोलस्क से मोती प्राप्त होते हैं। कवच उपयोग (Shell Use): गहनों और सजावट में। मत्स्य पालन (Fisheries): मोलस्क मछली पालन और समुद्री उद्योग का हिस्सा हैं।
    उदाहरण (Examples): स्नेल (Snail): स्थलीय मोलस्क। ऑक्टोपस (Octopus): जलीय और उच्च विकसित। सीप (Oyster): मोती और भोजन का स्रोत। कटलफिश (Cuttlefish): समुद्री मोलस्क। स्क्विड (Squid): तैराकी में कुशल समुद्री मोलस्क।

    प्रश्न 5 : घोंघे (Snails) धान की फसल पर कैसे प्रभाव डालते हैं?

    उत्तर: घोंघे (Snails), विशेषकर Pomacea spp. (Apple Snails), धान की फसलों के लिए एक गंभीर हानिकारक कीट बन सकते हैं। ये मुख्य रूप से नवांकुरित पौधों और धान की रोपाई को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट होती है।

    • घोंघे धान के बीज और नवांकुरित पौधों को खा जाते हैं। इससे पौधों का दोबारा रोपण (replanting) करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है।
    • रोपाई के बाद के शुरुआती 30 दिनों में पौधों पर सबसे अधिक नुकसान होता है। पौधों की वृद्धि रुक जाती है या पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।
    • ये धान के कोमल तनों और पत्तियों को चबाकर फसल को कमजोर कर देते हैं।
    • घोंघे का मल और मरने के बाद का सड़न जल की गुणवत्ता को खराब करता है, जो फसलों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

    1. उपाय (Control):

    • खेतों में पानी का स्तर 2-3 सेमी तक बनाए रखें। जल निकासी सुनिश्चित करें।
    • घोंघों द्वारा खाए जाने वाले पौधों की भरपाई के लिए।
    • घोंघों और उनके अंडों को हाथ से निकालकर नष्ट करें।

    धान के खेतों में घोंघे एक प्रमुख कीट के रूप में उभर रहे हैं। ये पौधों के शुरुआती चरण में सबसे अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। घोंघों के प्रभावी प्रबंधन के लिए सांस्कृतिक, जैविक, रासायनिक, और यांत्रिक उपायों का एकीकृत उपयोग आवश्यक है।